प्रजा तो बस बेचारी प्रजा होती है,
सके इर्द गिर्द बाड़ा चाहे जो बना दो.
प्रजातंत्र , गणतंत्र  राजतंत्र,अधिनायक तंत्र।  
राजे मनमौजी होते हैं ,दुष्यंत की तरह। 
सहवास कर भूल जाते हैं संगिनी को ,
मछली के पेट से निकली अंगूठी 
याद दिलाती है उसे प्रेयसी  की ,
कुछ इस तरह जैसे  राजनेताओं को चुनाव से याद आती है  जनता की. 
 चुनाव का महायज्ञ मतदान का पावन अनुष्ठान। 
इहागच्छ(  जाति का नाम ) इहागच्छ( उपजाति का नाम). 
पान ,फूल , नैवेद्य ,पोशाक ,अन्न, सिलिंडर , साईकिल 
द्रव्य ,के साथ सतत  सेवा के  मंत्र उच्चरित होते हैं 
 थोड़ा मान, थोड़ा  मनुहार,थोड़ा लाड दुलार। 
थोड़ा खेद , थोड़ सा  भूल का इजहार। 
बस फिर से नवीकृत हो जाता है  पंचसाला  करार। 
राजा को मिल गया अपना राज , रानी को मिल गया अपना सुहाग 
दोनों मिलकर गाएंगे "राजन के राजा---" एक ताल, विलम्बित, राग विहाग 
लेकिन प्रजा तो बस प्रजा होती है ,मान जाती है। 
राजों  का क्या राजे तो मनमौजी होते हैं।
आप शासन करो सरकार 
आप भाषण करो सरकार 
जनता कर लेगी अपना जुगाड़।
देने को रोजगार नहीं है आपके पास ? 
चिंता न करो सरकार ,
 हम जायेंगे रोजगार के पास , 
सरकारी  खज़ाना है खस्ताहाल 
मत कीजिये  इसका मलाल 
हम करेंगे सरकारी ख़ज़ाने को  मालामाल ,
अपनी छोटी छोटी  नौकरियों  से। 
 हम ठेला  चलाएंगे, हम रिक्शा  चलाएंगे , 
हम चौकीदारी करेंगे ,हम रेवड़ियां लगायेगे। 
" मुंबई में का बा " रैप करते हुए टेम्पो में सो जायेंगे, 
 मुंबई में बिहार की समृद्धि की डींगे हांकेंगे 
लेकिन बिहार को  सचमुच समृद्ध बनाएंगे। 
लेकिन प्लीज़ आप टेंशन न लो   सरकार 
प्लीज आप शासन करो सरकार 
प्लीज आप भाषण करो सरकार। 
पांच साल बाद हम  फिर  आयंगे , 
पैरों में भले  ही  पड़े हों  छाले 
मुंह में भले  ही  न पड़े  हों निवाले , 
धूप हो , घाम हो  , पानी  हो, पत्थर  हो ,
कोरोना  का कहर हो  या डेंगू  की लहर हो , 
लिए हुए  मन में ये आस,
पांच साल बाद  तो आएगा राजा
 जनता  के  पास।
 
 
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