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Friday, October 16, 2020


This is also published in Outlook Magazine 15 10 2020

 व्यंग्य

विक्रम और बेताल : किस्सा वही पुराना - संदर्भ आधुनिक।
राजा विक्रम चुपचाप उठा और श्मशान की ओर चल दिया। महल के सभी पहरेदार सो रहे थे पर शहर के सारे चोर जाग रहे थे. राजा को श्मशान पहुँचने की जल्दी थी इसलिए उसने उस समय कोई करवाई करना मुनासिब नहीं समझा। सोचा आखिर प्रकारांतर से सारा माल तो सरकारी ख़ज़ाने में पहुँच ही जायेगा. श्मशान पहुँच कर हमेशा की भांति उसने पीपल के पेड़ पर झूलती लाश को कंधे पर उठाया और चल पड़ा. राजा को अपरिचित मार्ग पर जाते हुए देख बेताल ने पूछा , "ये हम कहाँ जा रहे हैं."राजा ने कहा ," पड़ोस के राज्य में एक बहुत बड़ा यज्ञ हो रहा है, जहाँ प्रजातान्त्रिक कुरीतियों , मिथ्या आडंबरों ,ढकोसलों की आहुति दी जा रही है । मैं तंग आ गया हूँ ,प्रजातंत्र की लाश ढोते ढोते । बहुत पहले जब मैंने शासन की बागडोर संभाली थी तो मुझे विरासत में इसी पेड़ पर झूलता हुआ यह शव मिला था.मुझे बताया गया कि यह प्रजातंत्र है.मैंने पूछा भी नहीं कि ये ज़िंदा है या मुर्दा ?,मेरे पुरखो ने ही इस प्रजातंत्र नामक व्यवस्था का इजाद किया था . इसलिए इस शव का अंतिम संस्कार करने का पूरा अधिकार है मुझे. मैं सोच रहा हूँ तुम्हे भी आज मुक्ति दिला दूँ."बेताल ने चिर परिचित विनोद मिश्रित गंभीर स्वर में कहा . "राजन जो सूक्ष्म है , मात्र छाया है, उसे जलने का क्या भय। स्थूल मनुजों को काया लुप्त हो जाने का भय सताता है. तुम्हारा निर्णय तो अंतिम होगा लेकिन आखिर जब इस शव को तुम इतने दिनों से ढो रहे हो तो अचानक? प्रजातंत्र जीवित है या मृत यह एक यक्ष प्रश्न है, श्रोडिंजर'स कैट की तरह .यह जीवित भी है मृत भी , परिस्थितियों के अनुसार " बेताल ने कहा" लेकिन राजन , प्रजातंत्र है बड़े काम की चीज़। जिसने भी राजा का प्रजातांत्रिक ढंग से चयन की व्यवस्था की और फिर ऐसा पेंच डाल दिया कि जो एक बार आये वह हमेशा का होकर रह जाय , वह वास्तव में एक मनीषी रहा होगा। निरंकुश ,निरंतर और निर्भय होकर सत्ता का सुख भोगने की इससे बेहतर कोइ व्यवस्था नहीं हो सकती. जब तक राज करना है राज कर जब मन भर जाय तो इसे वारिस के नाम कर। न कोई रण कौशल , न कोई शौर्य , पराक्रम का प्रदर्शन।न सपरिवार गीएटिन ( guillotine ) होने का ख़तरा .इतिहास को खंगाल राजन छोटे छोटे राज रजवाड़े के लिए. कितना खून बहता है. कई बार तो राजा और भावी राजकुमार एक साथ खेत आते हैं , वंशावलियाँ मिट जाती हैं। यहाँ तो बस थोड़ा सा काइंयापन,थोड़ी बेशर्मी , मुट्ठी भर कमीनIपन, अंजुरीभर नमक हरामी , झूठ बोलने की विविध कलाएँ , गिरगिट सा रंग बदलने में महारत , साथ में एक चुटकी धुल उड़ाकर मौसम का हाल जानने का अनुभव। बस चल पड़ी तुम्हारी दुकान. जीते तो राजा भोज नहीं तो महाराजा भोगेन्द्र। मोटा पेंशन, हवाई यात्रा की सुविधा , नौकर , चाकर , ऐशो आराम। और हाँ सत्ता के बल पर जनता से लूटी हुई सम्पदा के अक्षुण्ण रहने के पूरी गारंटी।पुश्त दर पुश्त के लिये. फिर भी राजा झल्लाकर बोला “वो सब तो ठीक है, लेकिन ये साली जनता जो है ,हिसाब मांगे जा रही है. ५ साल में एक बार वोट देती है और1827 दिन ऊँगली करती है."1827 दिन ? " " 5 वर्ष के 1825 दिन और दो लीप ईयर के दो और दिन। हुए न 1827? सब इसी शव के चलते। लोग रोज़ प्रजातंत्र की हत्या की खबरे उड़ाते हैं । हत्या की खबर तो पहले हमें होगी , तंत्र हमारे हाँथ में है.” बेताल ने कहा ," चुनाव से बढ़कर प्रजातंत्र का क्या प्रमाण हो सकता है. चुनाव कराओ , चुनाव जीतो फिर निष्कंटक राज्य करो । " हाँ पर चुनाव जीतें कैसे ? पहले एक युग में मैंने वही भरत वाला मॉडल अपनाया। खुद ज़मीन पर बैठा और जनता की खडाऊ सिंहासन पर। फिर पता चला पादुका तो जनता के सर पर रखनी थी और सिंहासन उनकी छाती पर. कई युगों तक ये मॉडल भी ट्राई किया. फिर उन्हें तरह तरह के अमोद प्रमोद में बहलाया , उनके लिए टाइम मशीन बनाया, इतिहास के गर्भ में गोते लगIते हुए, पुनः वर्तमान में लौटने जैसे खेल आयोजित किये . वैराग्य और आध्यात्म , धर्म और ध्यान की और प्रेरित करने का बहुत प्रयास किया। पर बार बार इनका ध्यान इह लौकिक चीज़ों पर ही जाता है. जैसे सन्निपात ज्वर में रोगी चीखता है वैसे ये गाहे बगाहे चिल्लाने लगते हैं " रोटी दो , रोज़गार दो, रहने की ठावँ दो". पहले तो स्वान्तः सुखाय की भावना से लोग बाहर नौकरी ढूंढते थे , रोज़गार करते थे , कुछ नहीं तो असीम संतोष के साथ टेम्पो में सो जाते थे। लेकिन अब घर बैठे बैठे नौकरी चाहिए। बेताल किसी गहरी सोंच में डूबा हुआ था . पर बेताल की चुप्पी ने राजा के धैर्य की सीमा तोड़ दी. राजा ने अपना खडग निकला और हवा में भांजते हुए कहा , “अबे ,मैं राजा हूँ ,बोले जा रहा हूं , पर तुम साले बेताल हो कि बकलोल, कुछ बोल ही नहीं रहे. जब मर्ज़ी आता है अपनी बकचोदी करते हो और काम की बात पर ध्यान मग्न हो जाते हो.” " राजन तुम पूरी तरह जनोन्मुख हो गए हो अब मुझे इस पर लेश मात्र भी संदेह नहीं है. तुम्हारी भाषा से आम आदमी के मजबूरी , झेले हुए यथार्थ की बू आती है. इससे प्रजातंत्र में तुम्हारी घोर आस्था तो प्रमाणित होती है। परन्तु तुम्हारा तेवर बिलकुल राजशाही है. ख़ैर जाने दो।अब मैं जो तुम्हे बता रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो राजन. प्रजातंत्र में जनता का जगे रहना जनता एवं प्रजातंत्र दोनों के लिए आत्म घातक है., प्रजातान्त्रिक व्यवस्था माँ की तरह है, जनता बच्चों की तरह है . इसलिए अच्छा शासक वही है जो जनता को ऐसा अहसास कराये कि वह माँ की गोद में सुरक्षित सो रहा है. उसे ऐसी मानसिक बैसाखी दो की वह सोचे भी तुम्हारी सोच , देखे भी तुम्हारे सपने और तुम्हारे आनंद में उसे अपने आनंद की अनुभूति हो । प्रजातंत्र के लिए जनता का शिशुवत 24 घंटे मैं 22 घंटे सोना एक गंभीर अनिवार्यता है. चुनाव के समय उसे जगाओ फिर वोट ले कर सुलाओ ” राजा अचानक चलते चलते रुक गया। उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी। "ऐसा हो सकता है." "बिलकुल अब तुम्हे मैं एक नमूना दिखता हूँ."
कुछ देर बाद एक घर से दहाड़ मार कर रोने की आवाज़ आयी। बेताल ने कहा" बस काम बन गया। अब देखते जाओ. “ रुदन, क्रंदन, चीत्कार के बीच रैप की तर्ज़ पर "जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी ,से नर अवस नरक अधिकारी" गाता हुआ घर में राजा का दूत प्रविष्ट हुआ।"अरे मेरा इकलौता बेटा था. अच्छा खासा स्पोर्ट्समैन। आई आई टी का इंजीनयर ,अचानक इसे क्या हो गया।" दूत ने अनाहूत उस के शरीर का अन्त्य परीक्षण कर वहीँ का वहीँ अपना मंतव्य दे डाला । "अरे ये तो मर गया । लेकिन फिर भी इसे राज चिकित्सालय ले चलते हैं। राज वैद्य ने तो कितने ऐसे लोगों को जीवित कर दिया है।"तबतक मीडिया वाले साक्षात् शव की "लाइव" रिपोर्ट करने के लोभ में गिद्धों के भांति मडराने लगे और आकाश न सही ज़मीन पर ही आपस में टकराने लगे , एकाध सर फूटे लेकिन उनके जोश में कोई कमी नहीं आयी. राजा के दूत ने बहुत मुश्किल से परिवार को राज चिकित्सालय शव ले जाने को राज़ी किया. "मरे हुए को राज चिकित्सालय से क्या भय है ,हाँ जिस में थोड़ी जान बाकी हो तो अलग बात हैI” पड़ोसियों ने भी माँ को समझाया " अरे बावली मुर्दे का क्या बिगाड़ लेंगे, लेकिन क्या पता चुनावी माहौल है, राज चिकित्सक कोई चमत्कार कर ही डालें “ चैनल हर घंटे खबरें तोड़ रहे थे "शव का उपचार शुरू,", "शव के स्वस्थ्य में थोड़ा सुधार "शव के स्वस्थ्य में और सुधार ".टूटते हुए ख़बरों को श्रोत पर ही लूटने की मंशा से राज चिकित्सालय के पास धीरे धीरे भीड़ इकठ्ठा होने लगी." सड़क पर ही एनाटोमी का क्लास शुरू हो गया . नर कंकाल और अन्य सजीव माध्यमों से शरीर के बनावट मांस ,मज्जा, यकृत, रक्त नलिका , श्वसन क्रिया , मल द्वार , के बारे में ज्ञान परोसने लगे .पर जैसे जैसे दिन बीतते गए खबरों का ताबड़तोड़ टूटने का सिलसिला थोड़ा धीरे पड़ने लगा। सड़क पर खड़ी भीड़ घरों में सिमटने लगी। शव की हालत में निरंतर सुधार होता रहा पर जनता की करतल ध्वनियाँ धीरे धीरे मद्धिम पड़ने लगी। एंकरों का उन्माद साधारण संवाद के स्तर तक आ पहुंचा और धीरे धीरे बिलकुल सन्नाटा पसर गया। राजा ने बेताल की तरफ देखा। बेताल ने कहा " राजन, शव के अनुप्राणित होने के प्रति आश्वस्त होकर जनता गहरी नींद में सो गयी है। प्रजातंत्र के उपलब्धि की यह चरम अवस्थितिहै। जा राजन जा , अब इनके वस्त्राभूषण भी उतार ले. " राजा की आंखो में एक अजीब सी चमक आ गयी " और उसके बाद ?". दम धरो, राजन! अभी चुनाव आने वाला है। चुनाव जीत , फिर उसके बाद जो जी में आये कर ? " थोड़ी देर बाद बेताल ने कहा"हाँ जल्दी करो इस शव को जलना भी तो है. हाथरस नहीं हापुड़ ,हावड़ा ,हल्द्वानी,हाजीपुर होशियारपुर होशंगाबाद होसपेट , कहीं जला दो। सारा जम्बूद्वीप एक विशाल हाथरस ही तो है." राजा ने बेताल को कंधे से उतारना चाहा पर वह तो सामने खड़ा था। कृतज्ञता के आंसुओं से सिक्त राजा भावातिरेकमें बेताल के चरणों पर गिर पड़ा। "प्रभु इस परम ज्ञान की प्राप्ति के बाद कोई मूढ़ ही इस शव को अग्नि के हवाले करेगा. आज से बरगद के पेड़ पर झूलता हुआ प्रजातंत्र का यह शव राजचिन्ह होगा.

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